
किसी लेखक की पहली पुस्तक उसके लिए खास होती ही है। लेकिन एम एम अरमान साहब का कहानी संग्रह 'चौराहा' इसलिए खास नहीं है कि यह उनकी पहली किताब है बल्कि इसलिए खास है कि उसका शिल्प और रूप आधुनिक कथा साहित्य में नई जमीन तोडता है।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर एवं प्रबंधन शिक्षा के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले अरमान साहब ने यह पुस्तक हमें अत्यंत प्रेम से भेजी है। उसे देख कर निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि लेखक ने जिस खूबसूरती से जड़ जगत की मार्फत मानवीय कहानियां कही है उसी उत्कृष्टता से हैदराबाद की गुरुकुल पब्लिशिंग ने इस कहानी संग्रह को जानी-मानी थॉमसन प्रेस से छपवा कर अत्यंत सुंदर पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है।
पुस्तक के आरंभ में छपे अभिमत भी अरमान के लेखकीय कौशल की ताईद करते हैं। प्रमुख इतिहासकार और साहित्यकार प्रो. जहूर खां मेहर ने इसे "सोच, भाव, भाषा, कथ्य, कथन और शिल्प की दृष्टि से उच्चकोटि की उम्दा रचना" बताया है जबकि साहित्यकार अनिल अनवर ने इसे परिपक्व व्यक्ति के मानस मंथन की ऐसी उपज बताया है जिसमें "मनोवैज्ञानिक एकरूपता वाला कल्पना और यथार्थ का ताना-बाना है।" वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र परमार जालौरी कहते हैं कि लेखक ने "सृष्टि को दृष्टि देकर लोकधर्म का निर्वहन किया है।"
लेखक का खुद का कहना है कि उसकी काल्पनिक कहानियां उस वास्तविकता को बयान करती है जिसमें हम पाते हैं कि "जो विकास सभ्यता की आवश्यकता थी, सभ्यता आज उसी से लड़ने को विवश है।"
लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार डॉ. आईदान सिंह भाटी पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं कि "कथावस्तु की गंभीरता और गहराई इन कहानियों को आज के कथाजगत से अलग खड़ा करती है।"
'चौराहा' का लेखक चार रास्तों के मुहाने पर खड़ा होकर जग का मुजरा लेता है और उससे होने वाले खट्टे मीठे अनुभवों का अनोखी करुणा के साथ पाठक से साझा करता है।
पुस्तक आशा जगाती है कि साहित्य जगत का यह नवांकुर लेखक खूब पल्लवित होगा।
-राजेन्द्र बोडा, वरिष्ठ पत्रकार, जयपुर